आज टीवी पर ब्रू काफी का नया विज्ञापन देखा. एक पति को अपनी पत्नी के पैर दबाते देख अच्छा लगा. वैसे तो इन विज्ञापनों का मुख्य उद्देश्य अपना उत्पाद बेचना होता है, पर कहीं न कहीं इनसे पुरूष प्रधान समाज की मानसिकता पर प्रभाव तो पड़ता ही है. जिस समाज में पत्नी का पैर पति से छू जाना ही पाप समझा जाता हो, वहाँ ऐसे विज्ञापन कुछ राहत तो देते ही हैं. खासकर उनलोगों को जो अपनी पत्नी को सम्मान देते हैं, उसका ख्याल रखते हैं और बदले में अपने मित्रों से सुवचन सुनते हैं. जी हाँ, हमारे समाज में अपनी पत्नी को अपने समान स्थान देने वालों को "बीवी का गुलाम ",बीवी के पल्लू में रहने वाला "कुक्कुर "और देहात में "मेहर भस" तक कहा जाता है. ऐसे में यह विज्ञापन देखकर वो तो बेचारा खुश ही होगा .
विज्ञापन तो सफल हो ही गया-आखिर आकर्षित कर पाया अपनी तरफ. :)
यह विज्ञापन देखकर वो तो बेचारा खुश ही होगा ....