गजनी और रब ने बना दी जोड़ी जैसी बड़ी फिल्मों के बीच एक कम बजट की हास्य फ़िल्म ने धीरे -धीरे अपनी जगह बना ली .न इस फ़िल्म को देखने के लिए दिमाग़ पर अधिक ज़ोर लगाना पड़ा न दिल पर (जैसा कि ऊपर की दोनों बड़ी बजट की फिल्मों में क्रमशः करना पड़ा ),फ़िर भी स्वस्थ मनोरंजन की दृष्टि से यह एक सराहनीय फ़िल्म कही जा सकती है .हालाँकि फ़िल्म का उद्देश्य कोई संदेश देना नहीं है फ़िर भी इसमें निर्देशक ने एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार की उन परिस्थितियों को व्यंग्यपूर्ण ढंग से दिखाया है ,जो एक किशोर को चोर बनाने के लिए जिम्मेदार हैं .हमारे समाज में बढ़ता वर्गभेद किस प्रकार की विकृतियों को जन्म देगा ,इस पर रूककर सोचने की ज़रूरत है .इसके अतिरिक्त फ़िल्म एक ईमानदार चोर और बेईमान व्यवसायी को दिखाकर उनकी पोल भी खोलता है .अभय देओल अपने व्यक्तित्व के अनुसार चुन-चुनकर भूमिकाएं कर रहे हैं .एक बात समझ में नहीं आयी कि फिल्मकार परेश रावल से कई भूमिकाएं करवाकर कोई नया प्रयोग करना चाहता है या फिल्मोद्योग में कलाकारों की कमी हो गई है .अंततः फ़िल्म फुर्सत में देखने लायक है .
फ़िल्म फुर्सत में देखने लायक है .......तो जरूर देखेंगे फुर्सत में।